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Sardar Patel's vision: The foundation of India's oil self-sufficiency laid in 1948

Sardar Patel's vision: The foundation of India's oil self-sufficiency laid in 1948

सरदार पटेल की दूरदृष्टि: १९४८ में भारत की तेल आत्मनिर्भरता की नींव


स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्ष चुनौतियों और अवसरों से भरे थे। राष्ट्र नवनिर्माण के पथ पर अग्रसर था और दूरदर्शी नेताओं के कंधों पर भविष्य की मजबूत नींव रखने की जिम्मेदारी थी। इसी संदर्भ में, १२ जून १९४८ को भारत के लौह पुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा तत्कालीन खान और ऊर्जा मंत्री, श्री एन. वी. गाडगिल को लिखा गया एक पत्र, देश की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास के प्रति उनकी गहरी चिंता और व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

उस समय भारत अपनी तेल आवश्यकताओं के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर था। यह निर्भरता न केवल नागरिक जरूरतों और औद्योगिक विकास के लिए चिंता का विषय थी, बल्कि सेना की परिचालन क्षमता के लिए भी एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। सरदार पटेल ने इस स्थिति की गंभीरता को पहचानते हुए इसे "विदेशी देशों के चंगुल से बचने" की आवश्यकता से जोड़ा था।

पत्र में सरदार पटेल ने स्पष्ट किया कि भारत में तेल के ज्ञात भंडार अत्यंत सीमित थे, जिसमें असम का तेल क्षेत्र सालाना केवल २,००,००० टन का उत्पादन कर रहा था। राजपूताना, सौराष्ट्र, कच्छ और त्रिपुरा जैसे क्षेत्रों में तेल की संभावना तो थी, लेकिन कोई पूर्वेक्षण नहीं किया गया है और इसलिए, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि क्या संभावनाएँ हैं। त्रिपुरा के आसपास के पूर्वी क्षेत्र में कुछ तेल होने की संभावना है जिसे असम और बर्मा तेल क्षेत्रों का विस्तार माना जाता है लेकिन उस क्षेत्र में भी कोई पूर्वेक्षण नहीं किया गया है। इनमें से कुछ क्षेत्रों को अन्वेषण के लिए कुछ विदेशी हितों को दिया गया था लेकिन युद्ध के कारण कोई प्रगति नहीं हुई।

सरदार पटेल ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि तेल अन्वेषण एक अत्यंत जोखिम भरा और महंगा कार्य है, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सफलता की कोई गारंटी नहीं होती। उन्होंने उल्लेख किया कि कुछ तेल कंपनियाँ पहले ही पूर्वेक्षण पर बड़ी रकम खर्च कर चुकी थीं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। विश्व स्तर पर, तेल उद्योग पर अमेरिकी और ब्रिटिश समूहों का प्रभुत्व था, जिनके भूवैज्ञानिक अपने ज्ञान को गोपनीय रखते थे।

इन परिस्थितियों को देखते हुए, सरदार पटेल का मानना था कि सरकार द्वारा स्वयं तेल संसाधनों का पता लगाना और उनका दोहन करना अव्यावहारिक होगा। उन्होंने एक "भारत-विदेशी निगम" (Indo-foreign corporation) के गठन का सुझाव दिया, क्योंकि भारतीय निजी क्षेत्र के पास भी इस विशाल कार्य के लिए पर्याप्त संसाधन और विशेषज्ञता नहीं थी। उनका मानना था कि देश को शीघ्र परिणामों की आवश्यकता है, और यह सहयोग के माध्यम से ही संभव हो सकता है।

विदेशी कंपनियों के सहयोग को आकर्षित करने के लिए, सरदार पटेल ने कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की ओर इशारा किया:

  1. स्थिरता और दीर्घकालिक व्यवस्था: उत्पादन शुरू होने से लगभग ५० वर्षों की अवधि के लिए समझौता।
  1. निवेश की वसूली और लाभ: अन्वेषण में खोए हुए धन की वसूली और उचित लाभ सुनिश्चित करने का मौका।
  1. प्रारंभिक चरण में मामूली शुल्क: अन्वेषण और पूर्वेक्षण अवधि के लिए शुल्क कम रखा जाए।
  1. खनन पट्टे की लंबी अवधि: सरकार की तत्कालीन औद्योगिक नीति में खनिज तेलों के लिए दस साल की समीक्षा के प्रावधान को स्थगित रखने की आवश्यकता।

सरदार पटेल ने यह भी संकेत दिया कि विदेशी कंपनियाँ शायद सरकार के साथ सीधे पूंजी में भाग लेने के बजाय भारतीय निजी उद्यमों के साथ सहयोग करना पसंद करेंगी। उन्होंने इस मामले पर शीघ्र कैबिनेट निर्णय लेने की तात्कालिकता पर जोर दिया।

यह पत्र न केवल सरदार पटेल की असाधारण दूरदर्शिता को दर्शाता है, बल्कि उनके व्यावहारिक और परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण का भी प्रमाण है। वे अन्य मंत्रियों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों पर भी गहराई से विचार करते थे और उन्हें देश की प्रगति के लिए अधिकाधिक उन्नत कदम उठाने के लिए प्रेरित करते थे। उनका एकमात्र उद्देश्य देश और देशवासियों के लिए सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करना था। यह घटना भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक प्रारंभिक, किंतु महत्वपूर्ण विचार प्रक्रिया को रेखांकित करती है।





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27-11-1948 Sardar Patel warned Pakistan to stay away from Kashmir.

सरदार पटेल ने पाकिस्तान को कश्मीर से दूर रहने की चेतावनी दी।


27 नवंबर 1948 को, भारत के उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को कश्मीर से दूर रहने की कड़ी चेतावनी दी। उनकी यह घोषणा न केवल कश्मीर की अखंडता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, बल्कि उस समय की जटिल भू-राजनीतिक स्थिति में भारत की दृढ़ता को भी उजागर करती है। सरदार पटेल का यह संदेश आज भी भारत की एकता और संप्रभुता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

कश्मीर के प्रति अटल संकल्प


सरदार पटेल ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया, "अगर पाकिस्तान ने हमारे साथ अपना भाग्य लिखना तय कर लिया है, तो हम कश्मीर और उसकी जनता को अपने से अलग नहीं करेंगे।" यह कथन कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने की उनकी अटल नीति को दर्शाता है। उन्होंने कश्मीर की जनता के साथ भारत के गहरे भावनात्मक और रणनीतिक जुड़ाव पर जोर दिया, जिसे किसी भी कीमत पर तोड़ा नहीं जा सकता।

पाकिस्तान की धमकियों का जवाब

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री जफरुल्ला खान ने धमकी दी थी कि यदि भारत कश्मीर से अपनी सेना नहीं हटाता, तो पाकिस्तान अतिरिक्त सैन्य बल भेजेगा और हवाई हमलों का सहारा लेगा। इस धमकी का जवाब देते हुए सरदार पटेल ने निर्भीकता के साथ कहा, "हम इस तरह की धमकियों से डरने वाले नहीं हैं।" उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को अपने क्षेत्र की रक्षा करने और आक्रमण से बचाने का पूर्ण अधिकार है। यह कथन भारत की सैन्य और नैतिक ताकत को प्रदर्शित करता है।

हैदराबाद और जूनागढ़ का उदाहरण

सरदार पटेल ने अपने संबोधन में हैदराबाद और जूनागढ़ के उदाहरणों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि हैदराबाद के निजाम को बार-बार विलय के लिए समझाने की कोशिश की गई, लेकिन उनकी अनिच्छा के कारण स्थिति जटिल हो गई। अंततः, निजाम ने अपनी गलती स्वीकारी और विलय के लिए सहमति दी। इसी तरह, कश्मीर ने भी शुरुआत में अलग-थलग रहने का प्रयास किया, लेकिन समय पर कार्रवाई न करने के कारण पिछले एक वर्ष में कई दुखद घटनाएं हुईं। सरदार पटेल ने जोर देकर कहा कि यदि समय पर उचित कदम उठाए गए होते, तो इन घटनाओं से बचा जा सकता था।

कश्मीर में भारत की त्वरित सहायता

जब कश्मीर के शासक और जनता ने भारत से मदद मांगी, तो भारत ने तुरंत अपनी सेना और संसाधन उनकी सुरक्षा के लिए भेजे। सरदार पटेल ने कहा, "जब जरूरत के समय राज्य ने हमसे संपर्क किया और जनता व शासक दोनों हमारे पास मदद के लिए आए, तो हमने तुरंत उनकी सहायता की।" यह कदम भारत की संवेदनशीलता और जिम्मेदारी को दर्शाता है। हालांकि, युद्ध को एक वर्ष बीत चुका था, और संयुक्त राष्ट्र में यह मुद्दा अभी भी अनसुलझा था।

धमकियों के खिलाफ भारत की दृढ़ता

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने भारत पर अधिक सैन्य बल भेजने का आरोप लगाया और सेना वापस बुलाने की मांग की। इसके साथ ही, उन्होंने हवाई हमलों की धमकी भी दोहराई। सरदार पटेल ने इन धमकियों को खारिज करते हुए कहा, "हम अपने राज्य को विश्वासघात और आक्रमण से बचाने के लिए सेना और सामग्री भेजेंगे। ऐसा करना हमारा अधिकार है।" यह कथन भारत की संप्रभुता और आत्मरक्षा के प्रति उनकी दृढ़ता को रेखांकित करता है।

सरदार पटेल का यह संबोधन कश्मीर की रक्षा और भारत की एकता के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्होंने न केवल पाकिस्तान की धमकियों का निर्भीक जवाब दिया, बल्कि कश्मीर की जनता और भारत के बीच अटूट बंधन को भी रेखांकित किया। उनका यह संदेश आज भी हमें सिखाता है कि एकता, दृढ़ता और संवेदनशीलता के साथ किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। सरदार पटेल की यह चेतावनी भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल है, जो हमें अपनी संप्रभुता और एकता की रक्षा के लिए प्रेरित करता है।



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05-01-1948 Kashmir and the unity of India: Sardar Patel's historic speech at Kolkata

कश्मीर का एक इंच भी नहीं छोड़ा जाएगा : सरदार पटेल ने बंगाल के लोगों को विश्वास दिलाया 

5 जनवरी 1948 को, कोलकाता के मैदान में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए, भारत के उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने देशवासियों से धैर्य, एकता और सहनशीलता बनाए रखने की भावपूर्ण अपील की। इस संबोधन में उन्होंने कश्मीर की अखंडता, भारत की एकता, और विभाजन के बाद की चुनौतियों पर अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किए। सरदार पटेल का यह संदेश न केवल उस समय की परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक था, बल्कि आज भी यह भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

कश्मीर की अखंडता का संकल्प

सरदार पटेल ने अपने संबोधन में कश्मीर के मुद्दे पर भारत की दृढ़ स्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, "कश्मीर का एक इंच भी नहीं छोड़ा जाएगा।" यह कथन भारत की संप्रभुता और कश्मीर के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने जनमत के सिद्धांत का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि यदि कोई बलपूर्वक निर्णय थोपने का प्रयास करेगा, तो भारत जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है।

पाकिस्तान के साथ मतभेदों को सुलझाने में भारत की उदारता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सहिष्णुता का पालन करना चाहता है। लेकिन यदि पाकिस्तान भारत से प्राप्त संसाधनों का दुरुपयोग करके भारत पर हमला करता है, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह संदेश भारत की शांति और दृढ़ता के बीच संतुलन को दर्शाता है।

बंगाल के विभाजन का दर्द और एकता की अपील

पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के विभाजन से बंगाल की जनता को हुए कष्ट के प्रति गहरी सहानुभूति व्यक्त करते हुए सरदार पटेल ने कहा कि अब यह प्रश्न उठाने का समय नहीं है कि विभाजन क्यों स्वीकार किया गया। इसके बजाय, हमें बुराई से अच्छाई निकालने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि विभाजन के बावजूद दोनों बंगालों के बीच शत्रुता की दीवार नहीं बननी चाहिए। यह अपील बंगाल के लोगों को एकजुट रहने और आपसी मित्रता को बढ़ावा देने का संदेश देती है।

विभाजन के बाद की चुनौतियां और उपलब्धियां

विभाजन के बाद भारत को कई जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सरदार पटेल ने अपने संबोधन में उन उपलब्धियों का उल्लेख किया, जो इस कठिन समय में हासिल की गईं। उन्होंने सेना और भंडारों के विभाजन, साथ ही 40 से 50 लाख लोगों की अदला-बदली को बिना किसी न्यायालय के हस्तक्षेप के सफलतापूर्वक पूरा करने का जिक्र किया। यह कार्य इतना विशाल था कि दुनिया की कोई भी सरकार इस बोझ तले दब सकती थी, लेकिन भारत ने इस तूफान से निकलकर अपनी ताकत साबित की।

भारत की आर्थिक और सैन्य चुनौतियां

सरदार पटेल ने भारत की तत्कालीन संकटपूर्ण स्थिति का भी वर्णन किया। खाद्यान्न की कमी और आयात की भारी कीमत ने देश को आर्थिक रूप से कमजोर किया था। इसके अलावा, स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए एक सुदृढ़ सेना की आवश्यकता थी, जिसमें थलसेना, नौसेना, और वायुसेना के लिए उचित उपकरणों की जरूरत थी। इन चुनौतियों के बावजूद, भारत ने रियासतों का संविलयन करके देश को विखंडन से बचाया, जो उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व का प्रमाण है।

धर्मनिरपेक्षता और एकता का संदेश

धर्मनिरपेक्षता बनाम हिंदू राज्य के अनावश्यक विवाद की आलोचना करते हुए सरदार पटेल ने स्पष्ट किया कि हिंदू राज्य की बात गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत में 4.5 करोड़ मुसलमान हैं, जिनमें से कई ने पाकिस्तान के निर्माण में योगदान दिया था। लेकिन उनकी देशभक्ति पर शक करने के बजाय, उन्हें अपनी अंतरात्मा से सवाल करना चाहिए। यह कथन भारत की धर्मनिरपेक्षता और समावेशी नीति को दर्शाता है, जो सभी धर्मों के लोगों को एक साथ जोड़ने पर केंद्रित थी।

पाकिस्तान के लिए संदेश और भारत की आकांक्षा

सरदार पटेल ने पाकिस्तान को संबोधित करते हुए कहा, "अब आप पाकिस्तान पा चुके हैं। इसे स्वर्ग बनाएं, हम इसका स्वागत करेंगे।" उन्होंने यह भी कहा कि यदि भारत ने विभाजन स्वीकार नहीं किया होता, तो देश टुकड़ों में बंट गया होता। लेकिन अब जब भारत एक बड़े हिस्से को एकजुट करने में सफल हुआ है, तो इसे और शक्तिशाली बनाने का समय है। उन्होंने युवाओं से अनुशासन और एकता के साथ कार्य करने की अपील की, ताकि भारत विश्व में अपना गौरवशाली स्थान प्राप्त कर सके।

सरदार पटेल का यह संबोधन भारत की एकता, कश्मीर की अखंडता, और स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियों से निपटने की उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक है। उन्होंने न केवल कश्मीर के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया, बल्कि बंगाल के लोगों को एकता और सहिष्णुता का संदेश भी दिया। उनका यह कथन कि "हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे हमारा सिर शर्म से झुक जाए," आज भी हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी स्वतंत्रता का उपयोग गर्व और सम्मान के साथ करें। सरदार पटेल का यह संदेश भारत के इतिहास में एक अमर अध्याय है, जो हमें एकजुट और शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शन करता है।




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12-05-1948 - Independence of Kashmir and the historical message of Sardar Patel (कश्मीर की स्वतंत्रता और सरदार पटेल का ऐतिहासिक संदेश)

कश्मीर की स्वतंत्रता और सरदार पटेल का ऐतिहासिक संदेश

12 मई 1948 को, कश्मीर में स्वतंत्रता समारोह की पूर्व संध्या पर, भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने मसूरी से देश की भावी पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणादायक संदेश दिया। यह वह समय था जब कश्मीर एक जटिल और चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा था। सरदार पटेल, जो उस समय स्वास्थ्य कारणों से समारोह में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सके, ने अपने संदेश में कश्मीर के संघर्ष, एकता और भविष्य के लिए अपनी आशाओं को व्यक्त किया।

सरदार पटेल का संदेश और उनका स्वास्थ्य


मार्च 1948 में हृदयघात का सामना करने के बाद, चिकित्सकों की सलाह पर सरदार पटेल को मसूरी में रहना पड़ा। उन्होंने अपने संदेश में कहा, "मैं कश्मीर के स्वतंत्रता समारोह में उपस्थित होकर बहुत प्रसन्न होता, किंतु चिकित्सकों के परामर्श के कारण मुझे इतनी दूर रहकर ही इस समारोह को देखने से संतोष करना पड़ रहा है।" उनकी यह भावना दर्शाती है कि भले ही वह शारीरिक रूप से वहां मौजूद नहीं थे, उनका मन और आत्मा कश्मीर की जनता के साथ थी।

कश्मीर का संघर्ष और उत्तरदायी सरकार

1948 में कश्मीर एक कठिन परिस्थिति का सामना कर रहा था। एक ओर शत्रु ताकतें थीं, जो कश्मीर की शांति और समृद्धि को खतरे में डाल रही थीं, तो दूसरी ओर कश्मीर की जनता अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही थी। सरदार पटेल ने अपने संदेश में इस बात पर जोर दिया कि कश्मीर में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना, जिसमें शेख अब्दुल्ला को मेहर चंद महाजन की जगह प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था, एक महत्वपूर्ण कदम था।

शेख अब्दुल्ला ने 27 अप्रैल 1948 को सरदार पटेल को लिखे पत्र में उल्लेख किया था कि "इस राज्य की जनता ने एक लंबे और कड़े संघर्ष के बाद जम्मू व कश्मीर में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना कर ली है।" यह कथन कश्मीर की जनता के दृढ़ संकल्प और उनके संघर्ष की ताकत को दर्शाता है।

भूतकाल की कड़वाहट को भुलाकर भविष्य की ओर

सरदार पटेल ने अपने संदेश में भूतकाल की कड़वाहट को भुलाकर वर्तमान के मित्रतापूर्ण संबंधों और भविष्य के गौरवशाली विकास पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने कहा, "हमें भूतकाल की कड़वाहट की झलक को वर्तमान के हर्षित और मित्रतापूर्ण संबंधों के सामने प्रदर्शित नहीं करना चाहिए।" यह संदेश न केवल कश्मीर के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए एकता और सहयोग का प्रतीक था।

उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान हुए संघर्षों का भी जिक्र किया, जो लंबे समय तक कड़वाहट और तनाव से भरे रहे। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अंततः सहयोग का रास्ता अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप अतीत की घृणा को मित्रता और सहयोग में बदला गया। यह उदाहरण कश्मीर के लिए भी प्रेरणा का स्रोत था, जहां कठिनाइयों के बावजूद एक नई शुरुआत की उम्मीद थी।

कश्मीर के साथ भारत की एकता

सरदार पटेल का संदेश कश्मीर के लोगों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति और समर्थन को दर्शाता है। उन्होंने कहा, "यद्यपि मैं आपके समारोह से दूर रहूंगा, लेकिन मेरा मन पूरी तरह आपके साथ होगा। हमारी पूरी सहानुभूति सदा आपके हाल के वर्षों में किए गए स्वतंत्रता संघर्ष में आपके साथ रही है।" यह कथन भारत और कश्मीर के बीच गहरे भावनात्मक और वैचारिक जुड़ाव को दर्शाता है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत और कश्मीर के बीच की मित्रता समान आदर्शों और साझा लक्ष्यों पर आधारित है। यह मित्रता न केवल अतीत के संघर्षों से मजबूत हुई है, बल्कि भविष्य में भी स्थायी और सकारात्मक संबंधों का आधार बनेगी।




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06 Do you know? સરદાર સાહેબનો જુનાગઢનો ઐતિહાસિક પ્રવાસ

શું તમે જાણો છો?
સરદાર સાહેબનો જુનાગઢનો ઐતિહાસિક પ્રવાસ




સરદાર સાહેબનો જુનાગઢનો પ્રવાસ એટલા માટે ઐતિહાસિક હતો કારણકે તે આવનાર ભવિષ્યમાં એક એવી ધરોહર અર્પણ કરવાના હતાં કે જે એક યાદગાર સ્થળ અને ઈતિહાસમાં જેને વારંવાર લૂંટવામાં આવ્યું તે મંદિરનો જીર્ણોદ્ધાર કરવાનો સંકલ્પ લીધો હતો. આ ઐતિહાસિક મંદિર એટલે સોમનાથ મહાદેવનું મંદિર. સરદાર સાહેબ જામ સાહેબના પ્લેનમાં જામસાહેબ, હિંમતસિંહજી, દરબાર સાહેબ વગેરે સાથે કેશોદ માટે રવાના થયા. કેશોદ સ્ટેશનથી રેસિડેંટ સલૂનમાં (ટ્રેનનો ખાસ ડબ્બો) જુનાગઢ ગયા. જુનાગઢ સ્ટેશન પર તેમને ખાસ ગાર્ડ ઓફ ઓનર અને પુષ્પહારથી સન્માનિત કરવામાં આવ્યા. જુનાગઢમાં એક જાહેરસભામાં જુનાગઢના લોકો વથી શામળદાસ ગાંધીએ સરદાર સાહેબનું સન્માન કર્યું. અને સરદાર સાહેબે તેનો યોગ્ય જવાબ પણ આપ્યો. એજ સલૂનમાં વેરાવળ અને ત્યાંથી કાર દ્વારા સોમનાથ પહોચ્યા. ત્યાંના રમણીય દરિયા કિનારે પાણીમાં પગ રાખી એક શાંતિની અનુભુતી કરી. સોમનાથમાં ખંડેર હાલતમાં મંદિર જોઈ અને પાતાળેશ્વર મહાદેવ તરીકે ઓળખાતા ભગવાન શિવના દર્શન કરી મંદિર પરિસરની સભામાં સરદાર સાહેબે સોમનાથ મંદિરના જીર્ણોધ્ધારની પ્રતિજ્ઞા લીધી.

તા. ૧૨ નવેમ્બર ૧૯૪૭ ના રોજ સરદાર પટેલ (ભારતના સંરક્ષણ પ્રધાન અને નાયબ વડા પ્રધાન તથા ગુજરાતનાં પનોતા પુત્ર) તેમના સાથીઓ કાકા સાહેબ ગાડગીલ સાથે જુનાગઢ આવ્યા. અને બીજા દિવસે એટલે કે ૧૩ નવેમ્બર ૧૯૪૭ ના રોજ તેઓ સોમનાથ મંદિરના દર્શને ગયા અને ત્યાં સમુદ્રતટે તેમણે જળ હાથમાં લઈ સાથે આવેલા મહારાજ જામસાહેબ દિગ્વિજયસિંહજીની ઉપસ્થિતિમાં જાહેર કર્યું કે “ભારત સરકાર સોમનાથ મંદિરનું નવનિર્માણ કરશે અને જ્યોતિર્લિંગની સ્થાપના કરવાનો ઠરાવ કરે છે.” આ ઘોષણા ત્યાં હાજર રહેલ જનસમુદાયે સહર્ષ વધાવી અને દરેક સ્ત્રી પુરુષોની આંખોમાં હર્ષના આસું પણ ઉભરાયા. સરદાર સાહેબે ગંભીર અને મક્કમ સવારે જાહેર કર્યું કે “આજના નવા વર્ષના શુભ દિવસે અમે એવો નિર્ણય કર્યો છે કે ભગવાન સોમનાથના મંદિરને ફરી બાંધવું; સૌરાષ્ટ્રની પ્રજાએ તે માટે બનતું કરવું જોઈએ, કારણ કે આ પવિત્ર કાર્યમાં પ્રત્યેક વ્યક્તિએ પોતાનો યથાશક્તિ ફાળો આપવો જોઈએ.”

મહારાજા જામસાહેબે એક લાખ રૂપિયાના દાનની જાહેરાત કરી. આરઝી હકુમતના શામળદાસ ગાંધીએ આરઝી હકૂમત વતી ૫૧ લાખ રૂપિયાની જાહેરાત કરી. વેરાવળમાં મિલીટરી થાણું પણ મૂકવામાં આવ્યું. મહારાજા જામસાહેબના અધ્યક્ષપદે સોમનાથ ટ્રસ્ટની સ્થાપના કરવામાં આવી અને મંદિરના જીર્ણોદ્ધારનો પ્રારંભ થયો.

રાજા કુમારપાળ દ્વારા બંધાયેલ અને અનેક વખત ખંડિત થયેલ, તે સ્થળે નવા મંદિરને બાંધવાનો નિર્ણય ટ્રસ્ટે લીધો. પ્રભાસના લોકોએ, પ્રભાસ ઇતિહાસ સંશોધન સભા, સૌરાષ્ટ્ર ઇતિહાસ પરિષદ વગેરે જેવી સંસ્થાઓએ સખત વાંધાઓ નોંધાવ્યા, પરંતુ સોમનાથ ટ્રસ્ટે આ બધા વાંધાઓને અમાન્ય રાખી પુરાતત્ત્વની એક દુર્લભ ઇમારત જેવા આ મંદિરને પાયેથી પાડી નાંખવાનો નિર્ણય લીધો.




क्या आप जानते हैं?

सरदार साहब का जूनागढ़ का ऐतिहासिक दौरा


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सरदार साहब का जूनागढ़ का ऐतिहासिक दौरा

सरदार साहब की जूनागढ़ यात्रा ऐतिहासिक थी क्योंकि उन्हें आने वाले भविष्य के लिए एक विरासत पेश करनी थी जो एक यादगार जगह है और इतिहास में बार-बार लूटे गए मंदिर को पुनर्स्थापित करने का संकल्प लेना था। यह ऐतिहासिक मंदिर सोमनाथ महादेव का मंदिर है। सरदार साहब जाम साहब, हिम्मतसिंहजी, दरबार साहब आदि के साथ जाम साहब के विमान से केशोद के लिए रवाना हुए। केशोद स्टेशन से रेजिडेंट सैलून (ट्रेन का विशेष डिब्बा) से जूनागढ़ तक। जूनागढ़ स्टेशन पर उन्हें विशेष गार्ड ऑफ ऑनर और माला पहनाकर सम्मानित किया गया। जूनागढ़ में एक सार्वजनिक बैठक में शामलदास गांधी ने जूनागढ़ के लोगों की ओर से सरदार साहब का सम्मान किया। और सरदार साहब ने इसका उचित उत्तर भी दिया। वेरावल एज सैलून और वहां से कार द्वारा सोमनाथ पहुंचे। वहां का खूबसूरत समुद्र तट पानी में पैर रखने पर शांति का एहसास कराता है। सोमनाथ में खंडहर हो चुके मंदिर को देखने और पातालेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव के दर्शन करने के बाद सरदार साहब ने मंदिर परिसर की बैठक में सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया।

दिनांक १२ नवंबर १९४७ को सरदार पटेल (भारत के रक्षा मंत्री और उप प्रधान मंत्री और गुजरात के पोते) अपने साथियों काका साहेब गाडगिल के साथ जूनागढ़ आये। और अगले दिन यानी १३ नवंबर १९४७ को उन्होंने सोमनाथ मंदिर के दर्शन किए और वहां समुद्र तट पर अपने साथ आए महाराज जामसाहेब दिग्विजयसिंहजी की उपस्थिति में उन्होंने घोषणाकी कि "भारत सरकार सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करेगी और ज्योतिर्लिंग स्थापित करने का संकल्प लेगी।" इस घोषणा पर वहां मौजूद भीड़ खुशी से झूम उठी और हर महिला-पुरुष की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। सरदार साहब ने सुबह गंभीरता और दृढ़ता से घोषणा की कि “आज, नए साल के शुभ दिन पर, हमने भगवान सोमनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण करने का फैसला किया है; सौराष्ट्र के लोगों को इसके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को इस पवित्र कार्य में अपनी क्षमता का योगदान देना चाहिए।”

महाराजा जामसाहब ने एक लाख रुपये दान देने की घोषणा की. आरज़ी हकूमत के शामलदास गांधी ने आरज़ी हकूमत की ओर से ५१ लाख रुपये देने की घोषणा की, वेरावल में एक सैन्य अड्डा भी स्थापित किया गया था। महाराजा जामसाहब की अध्यक्षता में सोमनाथ ट्रस्ट की स्थापना हुई और मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हुआ।

ट्रस्ट ने भगवान सोमनाथ के मंदिर के स्थान पर एक नया मंदिर बनाने का निर्णय लिया, जिसे राजा कुमारपाल ने बनवाया था। प्रभास के लोगों, प्रभास इतिहास अनुसंधान परिषद, सौराष्ट्र इतिहास परिषद आदि संगठनों ने कड़ी आपत्ति जताई, लेकिन सोमनाथ ट्रस्ट ने इन सभी आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया और एक दुर्लभ पुरातात्विक इमारत की तरह इस मंदिर को ध्वस्त करने का फैसला किया।



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My Father No More! – Maniben Vallabhbhai Patel - 15-12-2022

मेरे पिता अब नहीं रहे! - मणिबेन वल्लभभाई पटेल

My Father No More! – Maniben Vallabhbhai Patel



आज सरदार पटेल की पुण्यतिथि 1५-१२-२०२२, मैं सोच रहा था कि उस समय क्या स्थिति रही होगी जब सरदार पटेल इस दुनिया को अलविदा कह कर चिर निद्रा में चले गए थे। तब मैंने मणिबेन पटेल की व्यथा पढ़ी और महसूस किया कि आप सभी के लिए यह जानना जरूरी है कि उस वक्त क्या परिस्थिति थी।


जब भी डॉक्टरों ने पिता को विशेष सावधानी बरतने, यात्राओं से दूर रहने, बैठकों को संबोधित करने या भाग लेने आदि की सलाह दी, तो मैं अकसर पिता की उपस्थिति में कहूंगी कि जब शून्य काल आएगा, तो वे निराशा में अपने हाथ धो लेंगे और पिता नहीं रहेंगे! और वास्तव में ऐसा होता है! एक महीने या उससे अधिक के लिए, एक या दो चिकित्सक हमेशा उनके साथ थे। जब यह घातक हमला हुआ, तो डॉ. नाथूभाई और गिल्डर उपस्थित थे। लगभग एक महीने से, वे इस आपदा को दूर करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे थे। लेकिन जिस बात को लेकर वे आशंकित थे, वही हुआ। पिताजी इतने कमजोर और निर्बल हो गए थे। १९४८ में पहले गंभीर हमले के समय, उनका स्वास्थ्य बहुत बेहतर था। लेकिन इस वर्ष के दौरान वह तेजी से बिगड़ रहा था और पिछले चार हफ्तों से, उसे तीव्र दर्द की पीड़ा का सामना करना पड़ा। अपने पूरे जीवन में, उन्होंने कभी भी शरीर के अपने दुःख को बाहर नहीं निकाला। लेकिन कई बार, इस अवधि के दौरान, जब दर्द अपनी चरम पर था, तो वह शायद ही इसे भीतर दबा सकते थे। तब पिता पछतावे में कहते थे: "डॉक्टरों, मौत के साथ यह लड़ाई कितनी भयानक है! डॉ. गिल्डर और नाथूभाई कहते थे: "बापू, इंग्लैंड में, क्या आप क्लोरोफॉर्म के बिना भी एक गंभीर ऑपरेशन से नहीं गुजरे थे? तो फिर प्रार्थना करें, थोड़ा धैर्य रखें, और आप अच्छी तरह से बाहर आ जाएंगे। इसके लिए पिताजी ने कहा, "ओह! मैं तब अपनी युवावस्था के चरम पर था!

यह गंभीर बीमारी थी और उस वजह से उनका शरीर हड्डियों जैसा हो गया है! इसलिए, मैं अपने आप को उनके फिर से आने की कोई उम्मीद नहीं जुटा सकी। उनकी अशांति और पीड़ा अकसर १९४४ में बा [कस्तूरबा गांधी] के आगा खान पेलेस के अंतिम दिनों को मेरी याद में पुनर्जीवित कर देती थी, जब वह उसी अग्निपरीक्षा से गुजरती थीं। "क्या वे समान लक्षण नहीं हैं? मैंने डॉ गिल्डर से दो या तीन बार कहा। शंकर ने एक से अधिक बार आशा की ध्वनि की। एक दिन, मुझे इतना निराश देखकर, डॉ. ढांढा ने मुझे खुश करने की कोशिश की: "आपको निराश होने की ज़रूरत है! इसमें कोई शक नहीं कि उनकी हालत गंभीर है। फिर भी, वह स्वस्थ हो जाएंगे।

मैं अपने मन को शांत नहीं कर सकती। पिता की चीखे: "ओह! यह मौत से क्या लड़ाई है!", वह बार-बार एक या दो आयत गाते है: 'जब जीवन का फव्वारा सूख जाता है, ओह! दयालु भगवान! अपने पवित्र मंदिर को मेरे लिए पूरी तरह से खोल दो," और अंत में उसने डॉक्टरों से कहा: "मैंने लंबे समय तक प्रार्थना की है और अब यह पर्याप्त है! - इन कथनों के साथ-साथ मेरे बारे में उनकी उदासीन दृष्टि ने मेरे पूर्वाभास और निराशा को बढ़ा दिया। कभी-कभी, पिता ने टिप्पणी की: "डॉक्टरों, यह दिल की पीड़ा है, मैं इसके पतन के साथ ही अपने उद्धार की आशा कर रहा था! लेकिन यह बहुत भयानक है! उन्हे डर था कि दिन-रात नींद न आने की वजह से मैं बीमार पड़ सकती हूं। इसलिए, उन्होंने डॉक्टरों से बात की और दो नर्सें प्राप्त कीं - एक दिन के लिए और दूसरी रात के लिए। फिर भी मेरा मन शांत नहीं था। जिस क्षण पिता बिस्तर पर बैठने या अपने दर्द के दुख को दूर करने के लिए कदम उठाते थे, मैं तुरंत उनके पास भाग जाती थी। किस स्नेह और प्यार के साथ, वह मुझसे कहते थे: "जाओ बेटी सो जाओ, अन्यथा तुम बीमार हो जाओगी! लेकिन पिछले दो दिनों से, यह मेरे लिए उनकी मीठी कविता थी। जब भी डॉक्टर उससे सोने की गुहार लगाते थे, तो वह मुझे घूरते थे और कहते : "इसे वास्तव में इसकी आवश्यकता है।

मैं दिन-रात उनकी इस भयानक पीड़ा का गवाह थी। इसलिए, मैंने अपने भीतर प्रार्थना करना शुरू कर दी: "हे भगवान, उसे स्वास्थ्य के लिए बहाल करें! लेकिन अगर यह तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो उन्हे बिना देरी किए ले जाओ यही मेरी प्रार्थना। मैं अब उसकी पीड़ा के इस भयानक द्रश्य को बर्दाश्त नहीं कर सकती!

आम तौर पर, वह अपने कपड़ों पर गंदगी के छोटे से छोटे स्थान को भी बर्दाश्त नहीं करते थे और उन्हें तुरंत बदल देते। इसलिए, अपने अंतिम दिनों के दौरान कई बार उसे अपने कपड़ों की परवाह किए बिना देखना दर्दनाक था। एक बार उन्होंने कहा: "देखिए डॉक्टर, इस शरीर के यंत्र के हिस्से एक-एक करके खराब हो रहे हैं।

ईश्वर की कृपा से उन्हें जीवन के इस पक्ष के प्रति कोई लगाव महसूस नहीं हुआ। मुझे डर था कि वह मेरी गिनती पर चिंता कर सकते है। पिछले तीन दिनों में, नींद की गोलियां काम नहीं कर रही थी। धुंधल की अवस्था में, उसके होंठ खुल जाते थे और कुछ बड़बड़ाने वाली बातें निकलती थीं।

अंतिम दिन तक, उनका मन देश के लिए विचारों से भरा हुआ था! हालांकि, उन्होंने कल रात कुछ नहीं कहा। जब यह भयानक हमला तड़के ३ बजे आया, तो डॉक्टरों ने उसके शरीर में खून की कमी को दूर कर दिया और उन्होंने उसके शरीर में ऑक्सीजन ट्यूब रखा। सभी ने उम्मीद खो दी थी। शंकर ने चिल्लाना शुरू कर दिया क्योंकि पिता तेजी से हमसे दूर हो रहे थे। रामेश्वरदासजी ने दो ब्राह्मणों को बुलाया और उन्होंने गीता का जाप शुरू किया। गोपी मेरे बिस्तर पर बैठ गई और अपने आप से इसका पाठ करने लगी। उसने सुबह ७ बजे तक पाठ पढ़ना समाप्त कर दिया। और लो! पिता की नाड़ी चलाने लगी। ऐसा लग रहा था कि आंखों में चमक फिर से लौट आई हो। कुछ मिनट बाद, और उन्होंने अपनी चेतना प्राप्त की और पानी मांगा। इसलिए, मैंने गंगा जल लिया और उसमें थोड़ा शहद मिलाया, मैंने पिलाना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा की "यह मीठा स्वाद है!"। उसे दो औंस पानी पीना लिया होगा, लेकिन जल्द ही उन्होंने जोर-जोर से सांस लेना शुरू कर दिया। बेचैनी ने उसे जकड़ लिया। वह खुद को बिस्तर पर बैठने के लिए हाथ फैलाए। लेकिन मेरे कहने पर कि वह खुद न हिले, वह चारपाई पर लेट गए। लेकिन, एक-दो बार, फिर वे दर्द से परेशान हो गए कि उसे उठने और बैठने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद उन्होंने बेड-पैन मांगा, और इसके तुरंत बाद, उनमें से जीवन खत्म होने लगा। अनुभवी नर्स ने कमरे के बहार खड़े डॉ नाथूभाई को इशारा किया। वह आये और देखा कि पल्स गायब है। आँखों की चमक बहुत कम हो रही थी। उसने अपने कान पिता के सीने पर रख दिए। सांस लेने की गति धीमी और धीमी हो रही थी। सुबह ९.३७ बजे पिता का निधन हो गया। शुक्रवार का दिन था। बापू भी उसी दिन अनंत काल में गुजर चुके थे!

मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा! क्या ही इच्छा थी कि मैं उनकी अत्यंत सेवा करूँ!

शंकर ने फोन पर यह खबर दिल्ली को दी। डाह्याभाई, भानुमती और बिपिन सुबह ३ बजे से उनके बिस्तर के पास थे। श्री मोरारजी और खेर आधे घंटे बाद आए। यह दुखद समाचार की खबर अन्य रिश्तेदारों को भी दी।

कुछ ही देर में बिड़ला हाउस लोगों से भर जाता है। बड़ी मुश्किल से पिताजी को नहलाने के लिए बाहर ले जाया जा सका। शनिवार तक वे डॉक्टरों को नहाने की अनुमति देने के लिए कह रहे थे। लेकिन वे उनकी इच्छा पूरी नहीं कर सके। लेकिन अब डॉक्टरों, नर्सों और डाह्याभाई ने मिलकर उनके शरीर को साफ किया।

मैंने उनके लिए बिस्तर तैयार किया। मैंने फिर उस पर एक सफेद चादर बिछाई और अपने सूत से एक लच्छा तैयार करवाया। स्नान करने के बाद, उनकी कमर के चारों ओर धोती पहनाई गई। फिर उन्होंने उनको एक कमीज पहनाई और उसे बिस्तर पर ले गए। फिर १९४० में उनके द्वारा काते गए सूत से उनके शरीर को कफन से ढक दिया गया। मैं उस कपड़े के टुकड़े को अपने साथ बॉम्बे ले गई थी कि इसमें से मैं उनके लिए एक कमीज तैयार करवाऊंगी। लेकिन भगवान ने कुछ और चाहा। श्री जी. डी. बिड़ला, शंकर की पत्नी, उनकी दो बेटियां और ईश्वर लाल दोपहर १२.३० बजे आए। आधे घंटे बाद, मेरे पिता को कमरे के बाहर ले जाया गया और बरामदे में फूलों से सजे एक विशेष आसन में रखा गया। वहां मैंने उनके माथे पर कुमकुम का निशान बनाया और उन्हें अपने धागे-हांक से माला पहनाई। इस के बाद में बिड़ला हाउस के द्वार खोल दिए गए ताकि भारत की जनता उनके अंतिम दर्शन कर सके।






31-10-2022 - Sardar Patel's Birthday - सरदार-नहेरु के रिश्ते और कुछ यादें सरदार की

सरदार-नहेरु के रिश्ते और कुछ यादें सरदार की

31-10-2022


आज सरदार पटेल के जन्म दिवस पर देश में सरदार पटेल और जवाहर लाल नहेरु दो महानुभावों के संबंध / रिश्तों के बारे में आज कल जो बातें हो रही है, उस विषय पर आज कुछ प्रसंग साझा करना चाहता हूँ। सरदार पटेल के नहेरु के साथ मतभेद जरूर थे लेकिन वे दोनों एक दूसरे के दुश्मन कभी न थे। वर्ष १९४७ के अंतिम महिने की बात है, जब सरदार पटेल और जवाहर लाल नहेरु के मतभेद चरमसीमा पर थे तब दोनों ने अपनी बात और अपना मंतव्य गांधीजी के समक्ष रखा, गाँधीजीने दोनों को सुना और सरदार पटेल से बात करते हुए कहा की :

आप की आजकी लोकप्रियता और प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हुए मुझे लगता है की आप को प्रधानमंत्री पद का स्वीकार करना चाहिए!

सरदार पटेलने बहुत विनम्र भाव से गांधीजी को कहा की :

प्रधानमंत्री तो जवाहर लाल बने रहे, मुझे राजकार्य से मुक्त करो यही एक प्रार्थना आप को करता हूँ, यदि में प्रधानमंत्री पद का स्वीकार करता हूँ तो जो लोग मेरे बारे में गलत बातें फैला रहे है उनकी बात को बिना कारण पुष्टि मिल जाएगी।

समझना यह है की भारत आजाद १५ अगस्त १९४७ को हुआ और १९४७ के अंतिम महीने मतलब यह बात १५ अगस्त और ३१ दिसंबर १९४७ के महीनों के दौरान हुई थी। यह बात का ब्योरा सरदार पटेल की पुत्री कुमारी मणिबेन पटेलने अपनी दिन वारी में भी लिखा है।

फ़ैज़पुर कॉंग्रेस अधिवेशन के दौरान जवाहर लाल कॉंग्रेस के प्रमुख चुने गए, उसके बाद नेहरू गुजरात के दौरे पर आए, बड़ौदा स्टेशन से एक बहुत बड़ा जुलूस निकला, बड़ौदा के राज मार्ग पर लोगों ने नेहरू का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत किया। जुलूस के दौरान बारिश शुरू हो गई, और बारिश में नेहरू भीग रहे थे, तभी सरदार पटेलने किसी को कहा : 

कोई छाता ले कर आओ और नेहरू को भीगने से बचाओ अगर नेहरू बीमार हो गए तो में क्या जवाब दूंगा? 

लेकिन नेहरू ने छाता ले कर आए व्यक्ति को मना किया और उस व्यक्ति ने सरदार के सामने देखा तब सरदार बोले : 

उनको बोलने दो, आप छाता उनके सर पर लगाकर रखो। 

नेहरू सरदार को ध्यान से देख रहे थे और नेहरू मुसकुराते हुए बोले : 

आप क्यू मेरे सिर पर छाता लगाने को कहते हो, इतने लोग भीग रहे है! 

सरदार बोले : 

आप हमारे मेहमान हो और अभी गुजरात का आधा सफ़र बाकी है। 

इस प्रसंग से समज सकते है की सरदार नेहरू का कितना ध्यान रखते थे।

सरदार स्पष्ट वक्ता थे यह बात सब जानते है, एक किस्सा जो कॉंग्रेस महा समिति के दौरान हुआ। कॉंग्रेस महा समिति की मीटिंग के दौरान मियां इफ़तीखारुद्दीनने मुस्लिम लीग की बात छेड़ी, और उन्होंने मुस्लिम लीग के बारे में कोई ऐसी बात कही जो सरदार पटेल को ईस लिए पसंद नहीं आई क्योंकि उस बात में मुस्लिम लीग की प्रशंसा हो रही थी, सरदार ने मियां इफ़तीखारुद्दीन को कहा :

जिन मुस्लिमों को कॉंग्रेस पर भरोसा हो वे कॉंग्रेस में रहे और जिन मुस्लिमों को कॉंग्रेस पर भरोसा नहीं वे लोग खुशी-खुशी मुस्लिम लीग में जा सकते है। कॉंग्रेस में ऐसे किसी भी मुस्लिमों का काम नहीं जिनकी वफादारी दोनों तरफ हो। अगर आपको भी कॉंग्रेस पर एतबार न हो तो आप भी चले जाए यहाँ से लीग में

भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल दिल्ली के पुराने किले में पाकिस्तान से आए निराश्रितों मिलने रात को बारह बजे पहुँच गए और उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ न हो और कोई भी घटना न बने इसका निर्देश पुलिस और प्रशासन के लोगों को दिया। सरदार पटेल के दिल में कभी किसी के लिए कोई घृणा नहीं थी। फिर भी गांधीजी को लोग पटेल के बारे में शिकायत करते रहते और ईस बात से सरदार को दुख होता, लेकिन सरदार गांधीजी के समक्ष अपनी बात सच्चाई से करते।

जब गांधीजी के मृत्यु के समाचार उनको मिले तो वे तुरंत बिरला हाउस गए और बापू के देख को देख एक बालक की तरह रो पड़े, सरदार को अपनी पत्नी के अवसान पर भी कभी आँसू नहीं आए थे लेकिन बापू के पार्थिव शरीर को देख एक बालक की तरह रो पड़े।

अंत में सरदार पटेल जब बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए लंदन गए, और उन्होंने अपना अभ्यास मिडल टेंपल में शुरू किया। तब उनकी आयु ३४ वर्ष थी, पढ़ाई के दौरान उनके पैरो में ४ आपरेशन हुए, और डॉक्टर कीड जिनका अस्पताल ५५ हार्ले स्ट्रीट पर था उन्होंने ६ जून १९१२ को अपनी रिपोर्ट में लिखा की : 

वल्लभभाई पटेल को इंग्लैंड की सर्दी का मौसम तकलीफ देगा, उन्हें जितनी जल्दी हो सके भारत लौट जाना चाहिए, इंग्लैंड की आबोहवा उनके स्वास्थ्य को बिगाड़ रही है। 

सरदार पटेल एक निडर और सच्चा देश भक्त था जो विपरीत परिस्थिति ओ में भी हार नहीं मानते थे और अपने अंतिम दिनों तक भारत की सेवा करते रहे। 

रशेष पटेल - करमसद


Photo Courtesy : Photo Division of India



Sardar and Gandhi - सरदार और गांधीजी ने एक-दूसरे के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को कम शब्दों में बखूबी व्यक्त किया करते थे

सरदार और गांधीजी ने एक-दूसरे के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को कम शब्दों में बखूबी व्यक्त किया करते थे



बापू ने जब इक्कीस दिन का उपवास किया तो सरदार श्री को दिल से ही अच्छा नहीं लगा, लेकिन सरदार पटेल उस विभूति से भलीभांति से वाकिफ थे जिसका भगवान भी समर्थन करने को तैयार थे, इसलिए उन्होंने गांधी जी के फैसले को आदर के साथ स्वीकार कर लिया।  सरदार साहब ने जेल से बापू को चिट्ठी लिखकर एक-दूसरे के लिए अपनी गहरी भावनाओं को बहुत अच्छे तरीके से कुछ शब्दों में व्यक्त किया:

आखिरकार भगवान ने आपका समर्थन किया और मैं इस शुभ अवसर पर आपका आशीर्वाद चाहता हूं। प्रभु ने तुम पर बड़ी दया की है। लेकिन अब हम पर भी कुछ दया करो। आपका सेवक वल्लभभाई का प्रणाम।

बापू का व्रत समाप्त होने के बाद फलो की टोकरी आने लगे, गांधीजी ने एक टोकरी सरदार को जेल भेज दिया। तो सरदार ने लिखा कि:

"आपने मुझे आम क्यू भेजे! कौन जानता है कि आप आज क्या करेंगे और आप कल क्या करेंगे। तुम्हारी दया और  अहिंसा  में क्रूरता और हिंसा वही जानता है जो रामबाण से मारा गया हो। अगर मेरे बात से सहमत नहीं हो तो, आप बा (कस्तूर बा) से पूछो, वह भी मुझसे सहमत होगी।

बापू जानते थे कि सरदार को उनका इक्कीस दिनों का उपवास पसंद नहीं आया था। सरदार साहब ने आम को लेकर बापू को चिट्ठी लिखकर बापू से शिकायत करने का मौका नहीं छोड़ा, ठीक वैसे ही जैसे वह एक गुस्सैल बच्चे को लाड़ प्यार करते थे। केवल एक सरदार ही गांधी जी की दया को निर्दयी और अहिंसा को हिंसा कहने की हिम्मत कर सकते है। सरदार की आत्मा बैरिस्टर की है, इसलिए गवाह के रूप में उन्होंने पत्र में कस्तूर बा को पूछने की बात कर दी। 

સરદાર અને ગાંધીજી ઓછા શબ્દોમાં એક બીજા પ્રત્યે ઊંડી લાગણી ખૂબ સારી રીતે વ્યક્ત કરતાં

સરદારશ્રીને બાપુએ જ્યારે એકવીસ દિવસના ઉપવાસ કરે તેમને અંતરથી ગમ્યું નહોતું પણ ઈશ્વર પણ જેમની ટેક રાખવા માટે તૈયાર હોય તેવી વિભૂતિની ઓળખ તો સરદાર પટેલને પૂરેપૂરી હતી, આથી તેમણે ગાંધીજીના નિર્ણયને નત મસ્તકે સ્વીકાર્યો. સરદાર સાહેબે બાપુને જેલમાંથી પત્ર લખ્યો જેમાં ઓછા શબ્દોમાં એક બીજા પ્રત્યે ઊંડી લાગણી ખૂબ સારી રીતે વ્યક્ત કરતાં લખ્યું :

“આખરે ઈશ્વરે આપની ટેક રાખી, આ પુણ્ય પ્રસંગે આપના આશીર્વાદ માગુ છું. પ્રભુની આપના ઉપર અપાર દયા થઈ છે. પણ હવે અમારા ઉપર પણ આપ થોડી દયા રાખજો. લિ. સેવક વલ્લભભાઈના દંડવત પ્રણામ.”

બાપુના ઉપવાસ પૂરા થયા અને પારણા પછી ફળોના કરંડિયા આવવા લાગ્યા, ગાંધીજીએ એક કરંડિયો સરદારને જેલમાં મોકલ્યો. એટલે સરદારે લખ્યું કે :

“મને કેરી શું કામ મોકલી! તમે આજે લાડ લડાવો ને કાલે શું કરો, તે કોણ જાણે. તમારી દયા અને અહિંસામાં જે નિર્દયતા અને હિંસા રહેલાં છે તે તો જેને રામબાણ વાગ્યા હોય તે જાણે. મારુ માનો તો બા ને પૂછજો, એ પણ મારી વાતમાં સંમત થશે જ.

બાપુને જાણ હતી કે સરદારને એકવીસ દિવસના તેમના ઉપવાસ ગમ્યા નથી. એક રિસાયેલ બાળકને જેમ લાડ લડાવે તેમ સરદાર સાહેબે બાપુને કેરી બાબતે પત્ર લખીને લાડ સાથે ફરીયાદ કરવાનો મોકો પણ ન છોડ્યો. ગાંધીજીની દયાને નિર્દયતા અને અહિંસાને હિંસા કહેવાની હિંમત એક સરદાર જ કરી શકે. સરદારનો આત્મા આમ તો એક બેરિસ્ટરનો એટલે સાક્ષી તરીકે તેમણે પત્રમાં કસ્તૂરબાને ટાંક્યા. 



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How Maniben Patel become Sardar Patel’s Secretary till his last breath?

How Maniben Patel become Sardar Patel’s Secretary till his last breath?


When the Sardar feel ill towards the end of the Bardoli Satyagraha in 1928, it was suggested that somebody should give him secretarial help. I said: “If someone is to be kept, why not I?” From 1929 until his death, I preserved his correspondence whenever possible. Once, when K. Gopalaswami, political commentator of the Times of India, visited him in his flat on Marine Drive, Bombay, the Sardar called for a letter that he had received from C. Rajagopalachari, forgetting that he had torn it up and thrown it in the wastepaper basket. Fortunately, I had collected the pieces. It took me some time to paste them together before passing it on to him. This happened before the Interim Government was formed.

મણિબેન પટેલ સરદાર પટેલના છેલ્લા શ્વાસ સુધી સેક્રેટરી કેવી રીતે બન્યાં?

૧૯૨૮માં બારડોલી સત્યાગ્રહના અંત સુધીમાં જ્યારે સરદારને માંદગી અનુભવતા હતા, ત્યારે એવું સૂચન કરવામાં આવ્યું હતું કે કોઈકે તેમને સચિવ તરીકે મદદ કરવી જોઈએ. મેં કહ્યું: "જો કોઈને રાખવા હોય તો હું કેમ નહીં?" ૧૯૨૯થી તેમના મૃત્યુ સુધી, જ્યારે પણ શક્ય હોય ત્યારે મેં તેમનો પત્રવ્યવહાર જાળવી રાખ્યો હતો. એક વખત ટાઈમ્સ ઓફ ઇન્ડિયાના રાજકીય વિવેચક કે. ગોપાલસ્વામી મુંબઈના મરીન ડ્રાઈવ પરના તેમના ફ્લેટમાં તેમની મુલાકાતે આવ્યા ત્યારે સરદારે સી. રાજગોપાલાચારી પાસેથી તેમને મળેલો એક પત્ર મંગાવ્યો. તેઓ એ ભૂલી ગયા કે તેમણે પત્ર ફાડી નાખ્યો હતો અને તેમણે તેને કચરાપેટીમાં ફેંકી દીધો હતો. સદભાગ્યે, મેં એ ટુકડાઓ એકઠા કર્યા હતા. તેને પસાર કરતા પહેલા તેમને એક સાથે ગોઠવી ચોંટાડવામાં મને થોડો સમય લાગ્યો. વચગાળાની સરકારની રચના થઈ તે પહેલાં આવું બન્યું હતું.

आखिरी सांस तक मणिबेन पटेल सरदार पटेल की सचिव कैसे बनीं?

जब सरदार 1928 में बारडोली सत्याग्रह के अंत में बीमार महसूस करते हैं, तो यह सुझाव दिया गया कि किसी को उन्हें साचिविक सहायता देनी चाहिए। मैंने कहा, "अगर किसी को रखना है, तो मुझे क्यों नहीं? 1929 से उनकी मृत्यु तक, मैंने जब भी संभव हो उनके पत्राचार को संरक्षित रखा। एक बार, जब टाइम्स ऑफ इंडिया के राजनीतिक टिप्पणीकार के गोपालस्वामी, बॉम्बे के मरीन ड्राइव पर उनके फ्लैट में उनसे मिलने आए, तो सरदार ने सी राजगोपालाचारी से प्राप्त एक पत्र के लिए बुलाया, यह भूल गए कि उन्होंने इसे फाड़ दिया था और इसे कचरे की टोकरी में फेंक दिया था। सौभाग्य से, मैंने टुकड़े एकत्र किए थे। इसे पारित करने से पहले उन्हें एक साथ रखने  में मुझे थोड़ा समय लगा। यह अंतरिम सरकार के गठन से पहले हुआ था।




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Gandhi and Sardar Patel | गांधी और सरदार पटेल । ગાંધી અને સરદાર પટેલ

Gandhi & Sardar Patel | गांधी और सरदार पटेल । ગાંધી અને સરદાર પટેલ

How were Sardar Vallabhai Patel related to the Gandhiji?



ગાંધીજીમાં સરદાર સાહેબે વિશ્વાસ મુક્યો, અને સરદાર પટેલ એમ કાંઈ કોઈને પારખ્યા વગર વિશ્વાસ ન મુકે, સરદાર સાહેબે કેમ ગાંધીજી પર વિશ્વાસ મુક્યો તે પણ જાણવું જોઈએ. ગાંધીજી ફક્ત રાજકીય કે ફક્ત આર્થિક કે ફક્ત સામાજિક નેતા ન હતા આપણે ખુશીથી કહી શકીએ કે મહાત્મા ગાંધીજી એક ધર્મનેતા હતા, એક આધ્યાત્મિક નેતા હતા. એમનું લક્ષ્ય સત્ય હતું. તેઓ કહેતા ઈશ્વર સત્ય છે એમ નહી પણ સત્ય ઈશ્વર છે. સત્યની શોધમાં લાગેલ ગાંધીજીમાં સરદાર પટેલે શ્રધ્ધા રાખી. અને ગાંધીજીને જે સત્ય સમજાયુ તે સત્યને અપનાવવાની વૃત્તિ સરદાર સાહેબે રાખી. સરદાર પટેલે તો અનેકવાર કહ્યુ છે કે : “હું ગાંધીજીનો સૈનિક છું. તે કહે તેમ કરવાને કાજે બંધાયેલો છું.” આ શબ્દો સરદાર સાહેબે ફક્ત બોલવા માટે નહોતા કહ્યા પરંતુ તેમણે તે વાતનો અક્ષરે અક્ષર પાળી બતાવ્યો.

સરદાર પટેલના શતાબ્દી ગ્રંથમાં એક વાત લખાયેલ છે તે સમજવા જેવી છે કે સરદાર પટેલ ગાંધીજીના અનુયાયી હતા પરંતુ અંધ ભક્ત નહોતા. તેમણે કહ્યુ કે : ઘણા મને ગાંધીજીનો અંધ ભક્ત કહે છે. હું ઈચ્છું છું કે હકીકતમાં મને તેમના અંધ ભક્ત બનવાની શક્તિ મળેપરંતુ અફસોસ તેવુ નથી. હું મારી પાસે સરેરાશ બુધ્ધિ અને સમજ હોવાનો દાવો કરું છું. મે દુનિયા જોઈ છેઅને તેથી આ સંભવ નથી કે હું આ અર્ધ નગ્ન વ્યક્તિને પાગલ માણસની જેમ અથવા કોઈ સમજણ વગર અનુસરુ. હું એવા વ્યવસાયનો સભ્ય હતો કે જેમાં કદાચ હુ ઘણાને ગેરમાર્ગે દોરી હું શ્રીમંત બની શક્યો હોતપરંતુ મે આ વ્યવસાય છોડી દીધોકારણકે મે આ માણસ પાસેથી જાણ્યુ કે આ એ રસ્તો નથી જેના થકી હું ખેડુતોનું ભલુ કરી શકુ. તેઓ ભારતમાં આવ્યા ત્યારથી જ હું તેમની સાથે રહ્યો છુંઅને જ્યાં સુધી હું જીવીશ અને તે જીવે ત્યાં સુધી આ સંબંધ રહેશે. તેમ છતાં હું તેમને મારા કામથી દૂર રાખું છું. જો આપણે ફક્ત નેતૃત્વ માટે તેમની તરફ ધ્યાન રાખીએ તો આપણે પહેલ અને સ્વતંત્ર કાર્યવાહીની ક્ષમતા ફરીથી મેળવી શકીશું નહી આ માટે તેમના માર્ગદર્શનની જ રાહ જોવી પડે. આપણે હંમેશા કોઈની સહાયતા પર નિર્ભર હોઈએ તો આપણે કાંઈ પણ પ્રાપ્ત કરવાની આશા રાખી શકીએજ્યારે તેઓ મૈસુરમાં બીમાર હતાત્યારે ઘણા લોકોએ તેમને ટેલીગ્રામ મોકલી વિનંતી કરી કે તેઓએ પૂર-રાહત કાર્ય માટે ગુજરાત આવવું. આથી તેમણે મને પુછ્યુ કે શું કરવું જોઈએત્યારે મે કહ્યુ કે દસ વર્ષથી તેઓ ગુજરાતને સલાહ આપે છેઅને જો તેમણે જાણવું હોય કે આ સલાહ મુજબ ગુજરાત અનુસરે છે કે નહી તો તમારે ગુજરાત ન જવુ જોઈએ. આવી જ રીતે મે તેમને કહ્યુ હતુ કે મારી બારડોલીમાં ધરપકડ થાય ત્યાર પછી જ તેમણે બારડોલી આવવું. શિસ્ત અને સંગઠનનો અભાવ એજ આપણી મુખ્ય ખામી છે. સૈનિક કેવી રીતે બનવું તે આપણે નથી જાણતા. આપણે હુકમ આપવા માટે ટેવાયેલ નથી. વ્યક્તિગત સ્વતંત્રતાના આ યુગમાંસ્વતંત્રની પરવાનગી ભુલ ભરેલ છે.

પ્રશ્ન ખેડા સત્યાગ્રહનો હોય કે બારડોલી સત્યાગ્રહનો હોય, કે પછી મીઠા સત્યાગ્રહ હોય સરદાર પટેલ માટે તો ગાંધીજી એ કહ્યું એટલે કરવાનું. પરંતુ તે સત્યાગ્રહો કેવી રીતે સફળ બનાવવા તેની યોજનાઓ સરદાર પટેલ જ તૈયાર કરતા જેમ કે મીઠા સત્યાગ્રહ (દાંડી કૂચ્) ની વાત કરીએ તો સરદાર સાહેબે સાબરમતિ આશ્રમથી દાંડી સુધી આવતા ગામોની સ્વંય મુલાકાત લીધી અને ગાંધીજીનો રાતવાસો ક્યા રહેશે? તે માટે કેવી સગવડો કરવી? ગામે ગામથી કેટલા લોકો આ કૂચમાં જોડાશે? એમ આવી નાનામાં નાની બાબતોનું પોતે ધ્યાન રાખ્યું અને અંગ્રેજોએ દાંડી કૂચ સફળ ન જાય તે માટે રાસ ગામે સરદાર સાહેબની ધરપકડ કરી. જ્યારે તેમની ધરપકડ થઈ ત્યારે પણ તેમણે જેલમાં રહીને સત્યાગ્રહ સફળ કેવી રીતે કરવો તેની પુરેપુરી તકેદારી રાખી.તેમની ધરપકડ ૭ માર્ચ ૧૯૩૦ના રોજ રાસ ગામે સરદાર પટેલને ભાષણ કરવા માટે રોકવામાં આવ્યા અને તેમને એક એવા ગુના હેઠળ દોષી ઠેરવવામાં આવ્યા કે જે તેમણે કર્યો જ નહોતો. સરદાર પટલે ભાષણનો એક પણ શબ્દ બોલ્યા નહોતા તેમ છ્તાં તેમને દોષી ઠેરવવામાં આવ્યા.

આવા હતા સરદાર આપણા

સંદર્ભ : સરદાર રાષ્ટ્રીય સંવાદિતાના સર્જક 

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Did Sardar Patel called Gandhiji a dictator?

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सरदार पटेलने गांधीजी को ध हिंदुस्तान टाईम्स के रीपोर्टर को गांधीजी को स्नेह व धैर्य से शासन करनेवाला तानाशाह बताया

ध हिंदुस्तान टाईम्स ९ मई १९३९

सरदार पटेलने कहा लोग मुझे हिटलर कहते है, लेकिन मैं कहता हूं कि गांधीजी सबसे बडे हिटलर हैं, जिन्हें मैंने देखा है। परंतु वह जो प्रभाव डालते है, वह अनंत प्रेम और धैर्य से पैदा होता है। उनके और जर्मनी के हिटलर के बीच यह खास फर्क है। महात्मा गांधी और अन्य लोगों के बीच अंतर इतना विशाल है, जो उन्हें लोगों का एकमात्र नेता बनाता है। मैं नही जानता कि उनके साथ कार्य करने के लायक हूं, लेकिन हमने उनका विश्वास जीत लिया लगता है। जो भी द्वेषपूर्ण आलोचनाएँ उन्हें सहनी पडती है, जो चाहे कितना भी प्रमुख हो, पर उनके बिना कार्य करने का साहस नही कर सकता। कितना भी कद्दावर नेता हो, उनका सहयोग चाहता है।“

अपने बारे में हुईं आलोचना के बारे में पटेलने कहा “दो या तीन प्रांतों में और अब कुछ राज्यों में मेरे विरुध्ध घातक मिथ्या प्रचार जान-बूझकर  किया जा रहा है। परंतु मैंए जान-बूझकर कोई गलत या असम्मानजनक कार्य नही किया है। मैं इस प्रकार के प्रलोभन के सामने झुकने के बजाय आत्महत्या कर लूंगा। मुझे महात्मा गांधी के साथ कार्य करने का गौरव प्राप्त हुआ है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं उनके नाम पर अपने कार्यो के द्वारा कलंक नही लगने दूंगा।“

Ref: Gandhi, Nehru aur Subhash - P N Chopra

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